स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेदर मोदी ने पूरे विश्व में हिंदी भाषा को सन्मान दिलाने के लिए जो कुछ किया है, वह बेहद प्रशंसनीय है: जनार्दन शर्मा
चंडीगढ़: 14 सितंबर 2021, भाजपा नेता जनार्दन शर्मा ने कहाकि हिंदी भाषा के माध्यम से ही देश को एक-सूत्र में पिरोया जा सकता है। हमारे देश में जितने भी राज्य हैं उनमे कई ऐसे हैं जिनकी अपनी-अपनी मातृ-भाषा है। उनका स्थान व सन्मान सर्वोपरि होना चाहिए, लेकिन शर्म की बात है कि दूसरी भाषा हम हिंदी को न अपनाते हुए गुलामी के दौर की याद ताजा करती अंग्रेजी को प्रयोग करना अपनी प्रतिष्ठा का प्रतीक समझते हैं।
जनार्दन शर्मा ने कहाकि आजादी मिलने के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्दी को राज भाषा बनाने का फैसला लिया गया था और तब से लेकर आज तक हर वर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया।
जनार्दन शर्मा ने कहाकि साल 1947 में जब अंग्रेजी हुकूमत से भारत आजाद हुआ तो उसके सामने देश की राष्ट्रभाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया था, क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती थी। 6 दिसंबर1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान का गठन हुआ। संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी गई। आजाद भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ। लेकिन भारत की कौन सी राष्ट्रभाषा चुनी जाए ये मुद्दा काफी अहम बना हुआ था। काफी सोच विचार के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया। संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिन्दी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। तब 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। 1998 से पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आंकड़े मिलते हैं, उनमें हिंदी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
जनार्दन शर्मा ने कहाकि स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेदर मोदी ने पूरे विश्व में हिंदी भाषा को सन्मान दिलाने के लिए जो कुछ किया है, वह बेहद प्रशंसनीय है। उन्होंने कहाकि निःसंदेह पिछले कुछ वर्षों में हिंदी भाषा ने काफी प्रगति की है लेकिन अभी और बहुत कुछ करना बाकी है, जिसके लिए हम सब को सरकार पर निर्भर न रहते हुए हिंदी भाषा को अपने जीवन में उतारना होगा।