चंडीगढ़। भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को देश में जो स्थान देने का वचन दिया था, वह आज भी अधूरा है। आम बोलचाल तो दूर, हमारे शिक्षण संस्थानों के हिंदी विभाग में भी आज सारा कामकाज हिंदी में नहीं होता। यह अवसर इस दृष्टि से हमारे लिए आत्मनिरीक्षण का है।
यह बात हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष व भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने बिहार के मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय और हरियाणा ग्रंथ अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिंदी साहित्य : विविध परिप्रेक्ष्य’ विषय पर आयोजित की गई एक दिवसीय संगोष्ठी में अपने संबोधन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि मूल्यांकन का विषय यह भी है कि स्वाधीनता के अमृत वर्ष में क्या वह संकल्प हम कायदे से पूरा कर पाए हैं? हिंदी को लंबी बहस के बाद संविधान सभा ने जो दर्जा देने का वचन दिया था, वह क्यों पूरा नहीं हो पाया?
चौहान ने कहा कि हमसे प्रेरणा लेकर अब पश्चिमी देशों में भी योग को अपनाया जा रहा है जिसकी मूल परिभाषा ही हिंदी पर आधारित है। इतना ही नहीं, अब कंप्यूटर की भाषा में भी हिंदी का प्रयोग होने लगा है। कंप्यूटर की तकनीकी भाषा के तौर पर हिंदी की स्वीकार्यता इस भाषा की वैज्ञानिकता को दर्शाती है जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। कंप्यूटर द्वारा हिंदी को अपनाए जाने का मतलब है हिंदी भाषा की वैश्विक पहचान।
उन्होंने कहा कि संतोष की बात यह है कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यह घोषणा की है कि भारत की सभी क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं में भी अब प्रौद्योगिकी की शिक्षा प्रदान की जाएगी। तकनीकी शिक्षा परिषद ने तकनीकी शिक्षा के लिए सभी भाषाओं के दरवाजे खोल दिए हैं। इनमें राजभाषा हिंदी भी शामिल है।
डॉ. चौहान ने बताया कि हरियाणा में हरियाणा ग्रंथ अकादमी के माध्यम से पॉलिटेक्निक के पाठ्यक्रम पर आधारित पुस्तकें तैयार करने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। उम्मीद है कि ये पुस्तकें बहुत जल्द हरियाणा के छात्रों को उपलब्ध हो सकेंगी।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता एवं अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रोफेसर खेम सिंह डहेरिया ने कहा कि हिंदी को भले ही राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिला हो लेकिन, हिंदी राष्ट्रभाषा ही है। हिंदी को संयुक्त भाषा में शामिल कराने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई एवं नरेंद्र मोदी को जाता है।