चंडीगढ़, 24 सितंबर। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) ने हाल ही में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के साथ भारत में गिद्ध प्रजातियों के संरक्षण एवं प्रजनन पर एक राष्ट्रीय समीक्षा बैठक का आयोजन किया।
यह बैठक गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र (वीसीबीसी), पिंजौर में आयोजित की गई थी।
इस बैठक में पांच भारतीय चिड़ियाघर, नंदनकानन जैविक उद्यान, भुवनेश्वर ओडिशा, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान और चिडिय़ाघर, भोपाल, मध्य प्रदेश, सक्करबाग चिडिय़ाघर, जूनागढ़, गुजरात, नेहरू जूलॉजिकल पार्क, हैदराबाद, तेलंगाना और असम राज्य चिडिय़ाघर, गुवाहाटी, असम सहित सभी केन्द्रों के निदेशकों, पशु चिकित्सकों और जीववैज्ञानिकों ने भाग लिया।
प्रवक्ता ने कहा कि राजाभातखवा, पश्चिम बंगाल और गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र, रानी, असम में संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से स्थापित किए गए केंद्रों ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया।
उन्होंने बताया कि बैठक के पहले दिन वीसीबीसी, पिंजौर के जीव वैज्ञानिकों और पशु चिकित्सक ने सभी प्रतिभागियों को केंद्र का दौरा करवाया तथा पशुपालन और देखभाल से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान किया।
उन्होंने बताया कि एवियरी और पक्षियों के एवियरी डिजाइन व रखरखाव का प्रदर्शन किया गया तथा चिड़ियाघरों के साथ अनुभव साझा किए गए।
दूसरे दिन, चिड़ियाघरों ने संरक्षण प्रजनन की स्थिति और आगे के रोड मैप पर चर्चा की।
यह सिफारिश की गई कि पशुपालन स्तर पर क्षमता सुदृढ़ीकरण, विशेष रूप से चारा और बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए वित्त का प्रावधान प्रमुख चुनौतियां थी।
यह भी सिफारिश की गई कि भारत में गिद्ध संरक्षण के लिए कार्य योजना (एपीवीसी) 2020-2025 में संरक्षण के लिए पहचान की गई।
दो अतिरिक्त प्रजातियों लाल सिर वाले गिद्ध (सार्कोजिप्स काल्वस) और मिस्र के गिद्ध (नियोफ्रॉन पर्कनोप्टेरस) को समन्वित संरक्षण प्रजनन के तहत लिया जा सकता है।
जगदीश चंद्र, प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन, हरियाणा, देबेंद्र दलाई, मुख्य वन्यजीव वार्डन, चंडीगढ़, डॉ. सोनाली घोष, डीआईजीएफ-सीजेडए, डॉ. बिवाश पांडव, निदेशक, बीएनएचएस और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. विभु प्रकाश ने वीसीबीसी, पिंजौर द्वारा तैयार ‘गिद्ध पालकों के लिए मैनुअल’ जारी किया।
बैठक के दौरान बताया गया कि गिद्धों की तीन जिप्स प्रजातियों (सफेद पीठ वाले, लंबे चोंच वाले और पतले बिल वाले) को विलुप्त होने से रोकने के लिए एक संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम स्थापित करना महत्वपूर्ण था। सीजेडए ने वर्ष 2006 में गिद्ध संरक्षण के लिए कार्य योजना जारी करने के साथ-साथ इस कार्यक्रम की शुरुआत की।