भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का लोहा दुनिया ने माना : मुख्यमंत्री
लखनऊ : 04 सितम्बर, 2025
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष के मुख्य समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देशवासियों के सामने विकसित भारत के लिए पंचप्रण के संकल्प से जुड़ने का आह्वान किया था। पंचप्रण में देश से गुलामी के अंशों को सर्वथा समाप्त करना, अपनी विरासत पर गौरव की अनुभूति करना, वीर सैनिकों के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त करना, सामाजिक एकता के लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्य करना और अपने कर्तव्यों के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना शामिल है। आज हम भारत सेना के वीर सैनिकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए गोरखा रेजीमेण्ट सेण्टर में एकत्र हुए हैं।
मुख्यमंत्री जी आज जनपद गोरखपुर में गोरखा युद्ध स्मारक के सौन्दर्गीकरण कार्य एवं संग्रहालय परियोजना का शिलान्यास करने के उपरान्त इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कार्यक्रम में वीर नारियों को सम्मानित भी किया। मुख्यमंत्री जी ने राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की पंक्तियों ‘कलम, आज उनकी जय बोल, कलम, आज उनकी की जय बोल। जला अस्थियां बारी-बारी, चिटकाई जिनमें चिंगारी। जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल। कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा, क्या जाने इतिहास बेचारा। साखी हैं उनकी महिमा के, सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल। कलम, आज उनकी जय बोल, कलम, आज उनकी जय बोल’ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का लोहा दुनिया ने माना है। जब गोरखा सैनिक ‘जय महाकाली जय गोरखाली’ के आह्वान के साथ शत्रु पर टूट पड़ते हैं, तो शत्रु पीछे हटने के लिए मजबूर हो जाता है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सन् 1816 में अंग्रेजों और गोरखा सैनिकों के बीच में युद्ध हुआ था। अंग्रेज गोरखा सैनिकों का सामना नहीं कर पाए और उन्हें सन्धि करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उसके उपरान्त ब्रिटिश आर्मी ने भी उनके शौर्य और पराक्रम को समझा था। ब्रिटिश आर्मी में भी गोरखा सैनिकों के लिए द्वार खुले थे। अंग्रेजों ने उनकी बहादुरी के लिए और मातृभूमि के प्रति उनके समर्पण के भाव को सम्मान दिया था। परिणामस्वरूप जब भी गोरखा सैनिकों को अवसर प्राप्त हुआ, उन्होंने अपनी वीरता का लोहा मनवाया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हमारे यहां महायोगी गुरु गोरखनाथ की परम्परा में देवी महाकाली की पूजा होती है। जहां भी बाबा गोरखनाथ जी के मन्दिर हैं, वहां पर काली जी का मन्दिर भी जरूर होगा। महाकाली, शक्ति की प्रतीक हैं और महायोगी गोरखनाथ, शिव के प्रतीक हैं। शिव और शक्ति का समन्वय ही जीवन का रहस्य है। गोरखाओं से ज्यादा इस रहस्य को कोई नहीं जान सकता। गोरखाओं ने जीवन के इस रहस्य को जानकर कभी मौत की परवाह नहीं की और शत्रु पर टूट पड़े। जिससे भी लड़े, उन्होंने वहां विजयश्री का वरण किया। सन् 1816 के ब्रिटिश गोरखा युद्ध के बाद ब्रिटिश सेवा में तथा स्वतंत्र भारत में भी गोरखा सैनिकों ने अलग-अलग मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। जहां भी उन्हें तैनात किया गया, भारतीय सेना का हिस्सा बनकर गोरखा सैनिकों ने अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया और शत्रु को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज यहां गोरखा भर्ती डिपो (जी०आर०डी०) में वीर गोरखा सैनिकों के पराक्रम का प्रतीक स्मारक भव्य स्वरूप ले सके, इस कार्य का शुभारम्भ होने जा रहा है। यह भव्य स्वरूप उन सैनिकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम बनेगा, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया। उनकी स्मृतियों को जीवन्त बनाए रखने, भावी पीढ़ी को एक नई प्रेरणा प्रदान करने तथा भारत और नेपाल के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक सम्बन्धों को एक नया आयाम देने के एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है।
मुख्यमंत्री जी ने चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल अनिल चौहान को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी व्यस्तता के बावजूद गोरखा रेजीमेण्ट के युद्ध स्मारक को एक भव्य स्वरूप देने और यहां एक म्यूजियम के शिलान्यास कार्यक्रम में अपना समय दिया। किसी भी जाति अथवा कौम का इतिहास तब तक अधूरा है, जब तक वह अपने शौर्य और पराक्रम को सम्मान नहीं देता है। अपनी परम्पराओं को सम्मान देकर ही कोई जाति आगे बढ़ सकती है और भावी पीढ़ी के लिए अपनी गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ा सकती है। यह कार्य आज यहां गोरखपुर के गोरखा भर्ती डिपो (जी०आर०डी०) में किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि यहां बना स्मारक 100 साल पुराना था। इसे वर्तमान के अनुरूप भव्य स्वरूप देने तथा एक म्यूजियम बनाए जाने की दृष्टि से यहां कार्य प्रारम्भ किए गए हैं। गोरखा रेजीमेण्ट के गठन से लेकर वर्तमान तक उनकी यूनिफॉर्म, अस्त्र-शस्त्र तथा युद्धकला में हुए परिवर्तन आदि का यहां प्रदर्शन किया जाएगा। यह वर्तमान के साथ ही भावी पीढ़ी के लिए एक नई प्रेरणा होंगे। स्मारक और म्यूजियम वीर सैनिकों के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने का माध्यम बनेंगे ।