सरहद पार से आतंकवाद के बढ़ते खतरे के मद्देनजर अमरिन्दर ने पीएम को लिखा पत्र
चंडीगढ़, 16 जुलाई। खालिस्तानी जत्थेबंदियों की तरफ से कुछ किसान नेताओं को निशाना बनाने की योजना समेत आईऐसआई की शह प्राप्त ग्रुपों द्वारा ड्रोन गतिविधियों और अन्य आतंकवादी सरगर्मियाँ बढ़ाने के सरहद पार के खतरों का हवाला देते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आंदोलनकारी किसानों के साथ तुरंत बातचीत शुरू करने और उनके मसले सुलझाने के लिए रचनात्मक यत्न करने की अपील की है।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ विचार-चर्चा करने के लिए पंजाब से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का प्रस्ताव रखा जिससे लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन की समस्या का स्थायी और सुखद हल निकाला जा सके क्योंकि यह हमारे सामाजिक ढांचे के लिए ख़तरा बनने के साथ-साथ आर्थिक सरगर्मियों पर को भी प्रभावित कर रहा है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सचेत करते हुये कहा कि पंजाब के साथ लम्बी अंतरराष्ट्रीय सरहद लगती होने के कारण सरहद पार की ताकतें हमारे गौरव, सौहृदय और मेहनती किसानों के भडक़े हुए जज़्बातों के साथ खेलने की कोशिश कर सकती हैं।
भारत सरकार की तरफ से किसानों की वाजिब चिंताएं हल किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘चाहे स्थिति अभी काबू में है परन्तु उनको डर है कि कुछ राजनैतिक पार्टियों की भडक़ाऊ बयानबाज़ी और रवैया और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं अमन -कानून की स्थिति की समस्या खड़ी कर सकतीं हैं और राज्य में बहुत संघर्ष करके हासिल की अमन -शान्ति को अपूर्णीय नुकसान पहुँच सकती है।’
मुख्यमंत्री ने यह पत्र खेती कानूनों को लेकर पंजाब में बढ़ रहे गुस्से के मद्देनजऱ लिखा गया है जिसके बारे उन्होंने कहा कि वह इससे पहले जून और दिसंबर, 2020 में लिखे अर्ध-सरकारी पत्रों में इसकी समीक्षा करने के लिए कह चुके हैं। ताज़ा पत्र पंजाब में भारत -पाक सरहद के 5-6 किलोमीटर में पड़ते गाँवों के साथ ड्रोन गतिविधियां बढने और पाकिस्तान की तरफ से भारत को हथियारों और हेरोइन की खेप भेजे जाने के संदर्भ में लिखा है। ख़ुफिय़ा रिपोर्टों में संकेत दिया गया है कि पंजाब के विधानसभा मतदान कुछ महीनों बाद होने के कारण आईऐसआई के नेतृत्व वाली खालिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादी जत्थेबंदियां नज़दीक भविष्य में राज्य में दहशती कार्यवाहियों की योजना बना रही हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली-हरियाणा सरहदों पर पिछले 7 महीनों से किसान आंदोलन कर रहे हैं और राज्य में भी खेती कानून रद्द करने की माँग कर रहे और अब तक उनके प्रदर्शन कुल -मिला कर शांतमयी रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि केंद्रीय मंत्रियों और किसान जत्थेबंदियों के प्रतिनिधियों के दरमियान कई दौर की बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकीं।’
मुख्यमंत्री ने कहा कि खेती कानूनों के साथ पैदा हुई बेचैनी के कारण राज्य का सामाजिक -आर्थिक ताना-बाना खतरे में पडऩे के इलावा लोगों के लोकतांत्रिक हकों के अनुसार चलती रोज़मर्रा की राजनैतिक सरगर्मियाँ भी आंदोलन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, चाहे राज्य सरकार ने अमन-कानून की व्यवस्था कायम रखने लिए पूरी कोशिश की है।
किसानों के साथ जुड़े तत्काल ध्यान मांगते कुछ अन्य मुद्दों और चिंताओं का जि़क्र करते हुए कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने 28 सितम्बर, 2020 को प्रधान मंत्री को लिखे अपने अर्ध -सरकारी पत्र का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने फ़सल के अवशेष के निपटारे के लिए धान पर न्युनतम समर्थन मूल्य के इलावा 100 रुपए प्रति क्विंटल मुआवज़ा देने की माँग की थी क्योंकि किसानों के लिए बिना कुछ खर्च किए पराली को जलाना ही एकमात्र रास्ता है।
अपने पत्र में कहा कि कोविड -19 की संभावित तीसरी लहर के मद्देनजऱ पराली जलाने की रोकथाम और इसके देश के इस क्षेत्र के लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पडऩे से रोके जाने का जि़क्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इन किसानों को न्युनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था और गेहूँ -धान की सरकारी खरीद जारी रखने के बारे उनकी चिंताओं सम्बन्धी स्पष्ट तौर पर फिर भरोसे की ज़रूरत है। इसी तरह खादों ख़ास कर 31 अक्तूबर, 2021 के बाद फोसफेटिक खादों की कीमतों में वृद्धि के डर और आशंकाओं को दूर करने की ज़रूरत है क्योंकि राज्य में गेहूँ की बीजाई के लिए नवंबर और दिसंबर महीने के दौरान राज्य में डी.ए.पी. का लगभग 60 प्रतिशत उपभोग होता है।