सरकारी योजनाओं में पंजाब से कहीं आगे है हरियाणा
चंडीगढ़, 2 सितंबर। हरियाणा और पंजाब का देश का पेट भरने में हमेशा अहम योगदान रहा है, परंतु पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा, कृषि में अपने ‘बड़े भाई’ पंजाब से काफी आगे निकल गया है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा प्रदेश द्वारा कृषि के मामले में हो रही प्रगति का एक बहुत बड़ा आधार राज्य सरकार की कृषि-नीतियां हैं।
पंजाब राज्य का कुल क्षेत्रफल व कृषि योग्य भूमि बेशक हरियाणा से कहीं ज्यादा है परंतु पिछले 7 वर्षों में मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल की वर्तमान सरकार ने 21 फल व सब्जियों तथा 11 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करके खरीद करने का जो साहसिक निर्णय लिया है उसके मुकाबले पंजाब नजदीक भी नहीं ठहरता।\
यही नहीं फसलों के विविधिकरण के लिए आरंभ की गई प्रोत्साहन योजना से लेकर फसल बीमा योजना के तहत किसानों के नुकसान की भरपाई करने जैसी लाभकारी योजनाओं के माध्यम से प्रदेश के किसानों में नई स्फूर्ति का संचार करके उनके आर्थिक हालातों को सुधारने की दिशा में कदम उठाए गए हैं।
कृषि को किसी भी देश की आर्थिक रीढ़ माना जाता है। कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में गहन जानकारी रखने वालों की बात मानें तो हरियाणा पिछले 7 वर्षों के दौरान पंजाब से किसानी-व्यवसाय के क्षेत्र में चार-कदम आगे जा चुका है।
हरियाणा में जहां तक कृषि क्षेत्र में उपलब्धियों की बात है, हरियाणा के आगे पंजाब कहीं नहीं ठहरता है। हरियाणा का कुल क्षेत्रफल जहां 44,212 वर्ग किलोमीटर है वहीं पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है। इसी प्रकार, हरियाणा की कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल 37.41 लाख हेक्टेयर तथा पंजाब की 42 लाख हेक्टेयर है।
कृषि विकास दर के मामले में भी हरियाणा की दर 6.3 फीसदी तथा पंजाब की दर मात्र 2.1 फीसदी है जो कि हरियाणा की दर के एक-तिहाई के बराबर है। गन्ना उत्पादक किसानों के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश में 11 चीनी-मिलें स्थापित की हैं, दूसरी तरफ पंजाब में कहने को तो चीनी-मिलों की कुल संख्या 15 है परंतु चालू हालत में मात्र 9 मिल हैं, शेष 6 मिल बंद पड़ी हैं।
किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम देने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के मामले में भी हरियाणा प्रदेश अपने ‘बड़े भाई’ पंजाब से काफी आगे है।
हरियाणा में 11 फसलें जिनमें गेंहू, जौ, चना, सूरजमुखी, सरसों, धान, मूंग, मक्का, बाजरा, कपास व मूंगफली शामिल हैं, को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है जबकि पंजाब में मात्र तीन फसलें गेंहू, धान व सूरजमुखी की ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जाती है।
हरियाणा में 21 प्रकार के फलों व सब्जियों के संरक्षित भाव निर्धारित करने के लिए जो ‘भावांतर भरपाई योजना’ शुरू की गई है उसकी चर्चा तो पूरे देश के किसानों में है। पंजाब में भावांतर भरपाई योजना जैसी कोई योजना ही नहीं है।
यही नहीं किसान हितैषी होने की सोच का परिचय देते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने जब राज्य में फल व सब्जियों के उत्पादकों के लिए ‘मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना’ की शुरूआत की तो आस-पड़ोस के राज्यों के किसान भी जिज्ञासु थे कि काश उनके राज्य में भी ऐसी योजना शुरू हो जाए। पंजाब में ऐसी कोई योजना आज तक शुरू नहीं हो पाई है।
अंतर्राज्यीय स्तर पर अपनी फसल की डिमांड व अच्छे भाव देखकर बेचने के इच्छुक किसानों के लिए हरियाणा सरकार ने प्रदेश की 81 मंडियों को ई-नाम पोर्टल से जोड़ने का काम किया,जबकि पंजाब की मात्र 37 मंडियों को उक्त पोर्टल से जोड़ा गया है।
राज्य सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में किसानों में जागरूकता बढ़ाकर प्रदेश में 76 जल एवं मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं, पंजाब में मात्र 61 प्रयोगशालाएं ही शुरू की गई बताया जाता है।
किसानों को फसल बिजाई के लिए गाइड करने हेतु राज्य सरकार द्वारा जल एवं मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं खोलकर किसानों को ‘सॉयल हैल्थ कार्ड’ बना कर दिए जा रहे हैं ताकि वे जमीन की उर्वरा-शक्ति के अनुसार फसल की बुवाई कर सकें और अधिक से अधिक पैदावार ले सकें।
हरियाणा शायद देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां मंडियों में आने वाले किसान तथा वहां कार्य करने वाले आढ़तियों को 10 लाख रूपए के बीमा से कवर किया गया है, पंजाब में ऐसी कोई भी योजना नहीं है।
कृषि के साथ-साथ हरियाणा के किसानों की अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए भी राज्य सरकार ने पशुपालन को बढ़ावा देते हुए ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ की तर्ज पर ‘पशुधन क्रेडिट कार्ड योजना’ शुरू की और राज्य में आज तक करीब 58 हजार कार्ड जारी भी कर दिए, पंजाब इस योजना को शुरू ही नहीं कर पाया।