चंडीगढ़, 11 सितंबर। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ओपी चौटाला की तरफ से लगाए गए आधारहीन आरोप का जवाब दिया है।
हुड्डा का कहना है कि वो एक वयोवृद्ध नेता के तौर पर ओपी चौटाला का सम्मान करते हैं लेकिन, उम्र के इस पड़ाव पर भी महज सियासी लालसा के लिए उन्हें झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए।
हुड्डा ने नसीहत दी कि एक उम्रदराज नेता को तथ्यों के विपरीत अनर्गल बयानबाजी शोभा नहीं देती।
उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार की नीतियों के चलते आज प्रदेश का हर वर्ग प्रताड़ित है। बेरोजगारी, अपराध व नशे की समस्या ऐतिहासिक चरम पर है और सूबे का किसान 10 महीने से सड़कों पर है। ऐसे में सरकार की बजाए प्रतिपक्ष पर निशाना साधना ओपी चौटाला की दिशाहीन राजनीति को दर्शाता है। बीजेपी की विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए चौटाला प्रतिपक्ष पर निशाना साध रहे हैं। क्योंकि, जनता जानती है कि हरियाणा में बीजेपी की जड़ें जमाने का काम ओपी चौटाला की पार्टी ने ही किया है।
हुड्डा ने कहा कि आज उन्हीं के परिवार की मेहरबानी के चलते प्रदेश में बीजेपी सत्ता पर काबिज है, जिसका खामियाजा प्रदेश का हर वर्ग भुगत रहा है लेकिन, अगर ओपी चौटाला सरकार की बजाय प्रतिपक्ष के खिलाफ राजनीति करने का मन बना चुके हैं तो उन्हें कम से कम जनता के सामने जेबीटी भर्ती घोटाले के सही तथ्य पेश करने चाहिए।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि उनके दोनों कार्यकाल में ओम प्रकाश चौटाला व उनके परिवार पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई। उन पर जेबीटी भर्ती घोटाले के आरोप उनके अपने करीबी आईएएस अधिकारी ने लगाए थे। चौटाला ने ही उसे डायरेक्टर प्राइमरी एजुकेशन लगाया था, जिसने 5-6-2003 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की और जेबीटी सलेक्शन की दो लिस्ट पेश की।
चौटाला को पता होना चाहिए कि उस वक्त वो खुद हरियाणा के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री थे। सारा हरियाणा इस बात को जानता है कि आईएएस रजनी शेखरी सिब्बल ने जुलाई 2000 से पहले जो असली लिस्ट अलमारी के अंदर सील करके रखी थी, वह लिस्ट कैसे बदली, किसने बदली और दूसरी सिलेक्शन लिस्ट उस अलमारी में कैसे पहुंची? ये सारे सवाल चौटाला सरकार के दौरान उठे थे, न कि कांग्रेस सरकार के दौरान।
इतना ही नहीं, 25 नवंबर 2003 को सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी, न कि कांग्रेस सरकार ने। कोर्ट के इसी आदेश पर ओम प्रकाश चौटाला और अन्य पर मुकदमा चला था।
आखिर में हुड्डा ने कहा कि उन्होंने कभी भी राजनीतिक दुर्भावना के चलते कोई कार्य नहीं किया। उन्होंने हमेशा सिद्धांतों की राजनीति की है। किसी के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाना या ओछी बयानबाजी करना उनके सिद्धांतों के खिलाफ है।