सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार गर्म है और इस बार 5G तकनीक अफवाह फैलाने वालों के निशाने पर है।
विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कई भ्रामक संदेश फैलाये जा रहे हैं,
जिनमें दावा किया जा रहा है कि 5G मोबाइल टॉवरों की टेस्टिंग से कोरोना वायरस की दूसरी लहर पैदा हुई है।
अफवाहों के चलते पंजाब और हरियाणा में दूरसंचार टावरों को भी निशाना बनाया जा रहा है।
PGI, चंडीगढ़ के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डॉक्टर रविंद्र खैवाल ने बताया कि, “कोविड 19 और 5जी नेटवर्क में कोई संबंध नहीं है
तथा वायरस रेडियो तरंगों / मोबाइल नेटवर्क से नहीं फैल सकता है।
कोरोना कम्युनिकेबल डिज़ीज़, जिसका मोबाइल टावर या 5G रेडियो तरंगों से कोई लेना देना नहीं
उन्होंने कहा की लोगों को ऐसी आधारहीन गलत सूचना को सच नहीं मानना चाहिये।”
दूरसंचार विभाग (डीओटी) तथा (डब्ल्यूएचओ) ने भी कहा है कि 5G तकनीक और कोविड- 19 के फैलने में कोई संबंध नहीं है ।
डीओटी ने अपने हालिया प्रेस बयान में कहा कि 5G तकनीक और कोविड-19 के फैलने में कोई संबंध नहीं है
और उनसे अपील की कि वे इस मामले में गलत सूचनाओं और अफवाहों से भ्रमित न हों।
5G तकनीक को कोविड-19 महामारी से जोड़ने के दावे झूठे हैं और इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
5G नेटवर्क की टेस्टिंग अभी भारत में कहीं भी शुरू नहीं हुई है
ऐसे में यह दावे कि भारत में 5G ट्रायल्स या नेटवर्क कोरोना वायरस पैदा कर रहे हैं, निराधार और गलत हैं।
कोरोना महामारी के इस मुश्किल समय में जब ज्यादातर काम जैसे चिकित्सा सेवा, पढ़ाई,
जरूरी सामानों की उपलब्धता, व्यापार आदि सभी टेलीकॉम सेवा की मदद से ऑनलाइन हो रहे हैं,
ऐसे में इन अफवाहों के चलते किसी भी प्रकार से टेलीकॉम नेटवर्क को क्षति पहुंचाना न केवल कानूनी अपराध है।
दुनिया में पहले ही कई देशों में 5जी नेटवर्क शुरू हो चुके हैं और लोग सुरक्षा के साथ इन सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी हरियाणा, पंजाब से होम आइसोलेशन में रह रहे मरीज़ों को फोन पर चिकित्सा सुविधा देने को कहा है।
कोर्ट ने कहा है कि टेलीफोन कम्पनियां भी इस मामले में आगे आएं।
और अपने स्थानिये इलाकों में चिकित्सा सुविधा सम्बन्धी टेलीफोन नंबर का प्रचार करें।
यह समय की मांग है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी टेलीकॉम नेटवर्क को नुकसान ना पहुंचाए।
ताकि कोई भी व्यक्ति किसी भी जरूरी चिकित्सा सेवा से, बच्चे पढ़ाई से, और नौकरी-पेशा लोग अपने व्यवसाय से वंचित ना रहें।
डीओटी ने यह भी बताया है कि मोबाइल टावरों से नॉन- आयोनाइजिंग रेडियो फ्रीक्वेंसी निकलती हैं,
जो कि बहुत कमजोर होती हैं और मनुष्यों समेत किसी भी जीवित कोशिका को नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं।
दूरसंचार विभाग ने रेडियो फ्रीक्वेंसी फील्ड की एक्सपोजर लिमिट के लिए मानक निर्धारित किए हैं,
जो इंटरनेशनल कमीशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन प्रोटेक्शन (आईसीएनआईआरपी),
और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से तय की गई सुरक्षित सीमा से करीब 10 गुना अधिक कठोर हैं।