अस्तित्व में आ रही हैं प्राकृतिक धर्मशालाएं
त्रिवेणी के पौधों से तैयार किए गए हैं चबूतरे, इनकी छाया के नीचे बैठकर गांव के लोग निपटा रहे हैं आपसी मतभेद
चंडीगढ़। Haryana में एक अनूठा जन आंदोलन चल रहा है। इस आंदोलन के जरिए लगभग 500 महापुरुषों, स्वतंत्रता सेनानियों व शहीदों की चिर स्थायी स्मृति में भी विभिन्न जिलो में त्रिवेणी लगायी जा चुकी हैं। लगभग 100 त्रिवेणियों पर चबुतरे बनवाकर उनको प्राकृतिक धर्मशालाओं का स्वरूप दिया जा चुका है। जिसकी छाया के नीचे बैठकर गांव के लोग अपने आपसी मतभेद दूर करते हैं।
यह जन आंदोलन त्रिवेणी बाबा की अगुवाई में चल रहा है। उनका मूल नाम सत्यवान है और वे बड़, पीपल, नीम (त्रिवेणी) लगाते-लगाते सत्यवान से त्रिवेणी बाबा के नाम से विख्यात हो चुके हैं। त्रिवेणी बाबा की इस मुहिम का प्रभाव न केवल हरियाणा बल्कि पूरे उत्तरी भारत में दिख रहा है। आज तक जन-जन के सहयोग से बाबा ने 50 हजार त्रिवेणी व 40 लाख के आस-पास पेड़ लगवा चुके है। उनका लक्ष्य 1 करोड़ पौधे व 1 लाख त्रिवेणी लगाने का है।
जुनून जो बन गया एक बड़ा अभियान
उनका, त्रिवेणी लगाने का जुनून कुछ इस तरह का है कि पिछले 26 वर्षों में ऐसा कोई दिन होगा जिस दिन एक त्रिवेणी अथवा कम से कम एक पौधा न लगाया गया हो। गांव सरल (Tosham) भिवानी के शमशान घाट में वर्ष 1994 में शुरूआत हुए त्रिवेणी रोपण महा-अभियान आज जन आंदोलन का विराट रूप ले चुका है।
एक त्रिवेणी से लेकर 100-100 त्रिवेणियाँ लहलाती देखी जा सकती है। हरियाणा, चण्डीगढ़ के प्रत्येक स्कूल, काॅलेज, आईटीआई, पॉलीटैक्नीक, थाने, पुलिस लाईन, जेल, अस्पताल, पशु हस्पताल में त्रिवेणी देखी जा सकती हैं।
त्रिवेणी बाबा ने पिछले ढाई दशकों से न केवल स्वंय पैाधारोपण किया बल्कि इस कार्यक्रम को संस्कारों, रिति-रिवाजों एवं रस्मों से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। आज लोग विवाह-शादियों की पूरी रस्में पौधारोपण के साथ पूरी करते देखे जा सकते है। इसी तरह जन्म-मरण जैसे संस्कारों को भी पर्यावरण से जोड़ने की एक मुहिम छेड़ रखी है। जिसके कारण आज लोग अपने पूवर्जो की मृत्यु पर ब्रहमभोज के स्थान पर अपने मेहमानों एवं रिश्तेदारों को फलदार पौधे देने लगे।
अभियान में महिलाओं का है अहम रोल
महिलाओं को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना सबसे महत्वपूर्ण है। इसके लिए सैकड़ों गांव की महिलाओं को एक-एक फलदार पौधा देकर उनको अपने व अपने बच्चों के जन्म दिन घर में एक-एक पौधा लगाने के लिए प्रेरित किया। जिससे प्रत्येक घर में एक वाटिका तैयार हो गई।
त्रिवेणी बाबा के अथक प्रयास से आज युवा, बुजुर्ग, महिला, गरीब, अमीर सबको अपने जीवन में एक त्रिवेणी लगाने की प्रेरणा मिली है।
इसके साथ-साथ त्रिवेणी बाबा ने पर्यावरण संरक्षण को धर्म से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभायी है। मेवात के प्रत्येक गांव में मौला-मौलीवीयों के साथ मिलकर सदभावना त्रिवेणीयां लगाई है। 30 नवम्बर 2020 को प्रकाश पर्व पर गुरू नानक को समर्पित 551 नानक त्रिवेणी लगाने की शुरूआत की। अब तक 100 त्रिवेणी उनकी स्मृति में लगायी जा चुकी है। इन त्रिवेणियों को लगाने का मकसद पर्यावरण संरक्षण को धर्म से जोड़ना क्योंकि सभी धर्माें का सार प्रकृति की रक्षा करना है।
आज गांवो, कस्बों, शहरों में किसी कार्यक्रम की शुरूआत अथवा उद्घाटन भी त्रिवेणी रोपण अथवा पौधारोपण से हो रहा। कर्मचारी अपनी सेवानिवृति भी त्रिवेणी बाबा के प्रयासों से त्रिवेणी लगा कर कर रहे है।
54 वर्षीय त्रिवेणी बाबा स्वामी विवेकानन्द के अनुगत एवं अनुरागी हैं तथा इनका जन्म भिवानी जिले के लोहारू उपमण्डल के तहत आने वाले गांव बिसलवास में हुआ था।